तुम यूँही मसरूफ़ रहना अपने बहानो में
और कहना कि,
"समय नहीं मिलता तुम तक आने की
मसरूफ़ियत में इसकदर खोया हूँ मैं"
और मैं,
रंग-ए-लम्स देखने के लिए
अपनी रूह छोड़ जाती हूँ
सुलझाना नहीं शब्दों को
जिन्हें, मैं छोड़ जाती हूँ
लो, अब मैं जा रहीं हूँ...
ख़्वाब सा तुम्हें अपने साथ न ले जाऊ
चुरा न लूँ तुम्हें, दूर रहना तुम,
मुझसे, दूर रहना
यूँही अपने बहानो में मसरूफ़ रहना
और रहना, मुझसे दूर
उफ़क़ पे बैठ, तुम्हारा इंतज़ार करूँगी
जब,
मसरूफ़ियत से जी चुराना हो
तो आना मिलने, फ़ुर्सत से,
उजली उजली बातें उतारेंगे
लहरों पर
एक मुट्ठी फ़ुर्सत ले आना, तुम
और, जाते जाते
एक मुट्ठी बातें ले जाना
तो,
अब मैं चलू?
इंतज़ार जो करना है तुम्हारा...
© Neha R Krishna
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