Tuesday, 23 September 2014

"आओ, सूरज बाँट लें..."


आओना, हम सूरज बाँट लें
तुम सुबह की अंगड़ाई तोड़ लेना
और मैं गुलाबी शाम परोसूँगी

शहर शहर किससे बिखेर देंगे
आओना, एक बार
सूरज बाँट लें, हम

एक सूरज, तुम्हारे देश का
सजाऊँ, अपने बरामदे में
और, भेजू एक सूरज अपने हवालों से
तुम्हारा घर सजाने के लिए

तन्हा तन्हा क्यूँ बैठे 
आओना, सूरज बाँट लें हम

पंखों पे सूरज के,
हाल-ए-दिल लिख, भेज रही हूँ
तुम अहवाल-ए-दिल-ए-ज़ार बाँट देना मुझसे

आओना, 
सूरज बाँट लें हम...



© Neha R Krishna


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